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राजस्थान के 908 बंधुआ मजदूरों को पुनर्वासित करने की लड़ाई लड़ेगी लॉ पावर एसोसिएशन – ऐडवोकेट योगेश प्रशाद

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9.फरवरी (डीडी न्यूजपेपर) । सामान्यतः भारत में बंधुआ मज़दूरी  गैर-कानूनी है और पूर्णतया प्रतिबंधित है परंतु हमें अक्सर इस प्रकार की घटनाएँ देखने को मिलती रहती है। वर्तमान में बंधुआ मज़दूरी  का एक नया प्रारूप देखने को मिल रहा है जिसे ‘आधुनिक दासता’ (Modern Slavery) की संज्ञा दी है। वैश्विक दासता सूचकांक (Global Slavery Index), 2018 के अनुसार, भारत में 18 मिलियन लोग आधुनिक दासता में जकड़े हुए हैं। ऐसा व्यक्ति जो लिये हुए ऋण को चुकाने के बदले ऋणदाता के लिये श्रम करता है या सेवाएँ देता है, बंधुआ मज़दूर (Bonded Labour) कहलाता है। इसे ‘अनुबंध श्रमिक’ या ‘बंधक मजदूर’ भी कहते हैं।

शहरों में प्रवासी मजदूरों को अपने श्रम को बहुत कम या बिना वेतन के बेचने को मजबूर होना पड़ता है। शहरों में छोटे स्तर की इकाईयों जैसे- पटाखे निर्माण की फक्ट्रियाँ, टेक्सटाइल उद्योग, चमड़ा उद्योग, चाय की दुकानों, होटलों,ढाबों आदि में तमाम प्रवासी मजदूर कार्य करते हुए दिख जाते हैं। इतना ही नहीं समय के साथ बंधुआ मज़दूरी ने अपना रूप परिष्कृत कर लिया है, जिसे विशेषज्ञों द्वारा “आधुनिक दासता” की संज्ञा दी गई है।

बंधुआ मजदूरी पर कार्यरत अग्रणी संस्था “लॉ पावर एसोसिएशन” के संस्थापक ऐडवोकेट योगेश प्रशाद ने जानकारी दी कि उनकी संस्था द्वारा राजस्थान सरकार के लेबर विभाग से बंधुआ श्रमिकों के संबंध में जानकारी मांगी गई थी, जिसके जवाब में राजस्थान सरकार द्वारा बताया गई कि तीन वर्षो में कुल 384 ऐसे बंधुआ श्रमिक है जिन्हे बंधुआ श्रमिक मान कर मुक्ति प्रमाण पत्र दिया गया है पर तीन वर्षो से कोई आर्थिक सहायता नहीं दी गई। इसके अलावा 524 ऐसे बंधुआ श्रमिक है जिनको मुक्ति प्रमाण पत्र के बाद अग्रिम सहायता राशि दी गई है लेकिन पूर्ण आर्थिक मुआवजा नहीं दिया गया। इस बारे एडवोकेट योगेश प्रशाद ने बताया कि उनकी संस्था द्वारा अब 384 व 524 बंधुआ श्रमिकों को पूर्ण आर्थिक मुआवजा दिलाने हेतु लड़ाई लड़ी जाएगी, जिसकी शुरुआत आज कर दी गई है। योगेश प्रशाद ने बताया कि उनकी संस्था द्वारा सभी 908 बंधुआ मजदूरों को पूर्ण आर्थिक मुआवजा दिलवा कर पुनर्वासित करने हेतु राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग को शिकायत दी गई है। उन्होंने कहा कि हमें राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग पर पूर्ण विश्वास है क्योंकि वे बंधुआ मजदूरों की मुक्ति व उनके पुनर्वास के लिए उचित आदेश देते है।

इस अवसर पर लेबर अधिकारो की रक्षा हेतु कार्यरत श्री विजय पाल ने बताया कि बंधुआ मज़दूर पुनर्वास योजना 2016 के अनुसार, इस योजना के तहत बंधुआ मज़दूरी से मुक्त किये गए वयस्क पुरुषों को 1 लाख रुपए तथा बाल बंधुआ मज़दूरों और महिला बंधुआ मज़दूरों को 2 लाख रुपए तक की वित्तीय सहायता प्रदान करने की व्यवस्था की गई है। साथ ही योजना के तहत प्रत्येक राज्य को इस संबंध में सर्वेक्षण के लिये भी प्रति ज़िला 4.50 लाख रुपए की वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है।

इस अवसर पर लॉ पावर एसोसिएशन के सह संस्थापक व बाल अधिकार कार्यकर्ता श्री दिनेश कुमार ने कहा कि हजारों की संख्या में छत्तीसगढ़ व अन्य राज्यो से मजदूर देश के अलग अलग राज्यों में बंधुआ मजदूरों की भांति काम कर रहे है। इसे रोकने के लिए लॉ पावर एसोसिएशन की सरकारों से मांग है कि सरकार द्वारा समय-समय पर सर्वेक्षण करके बंधुआ मजदूरों का एक डेटाबेस बनाने के लिये ठोस प्रयास किये जाने की आवश्यकता है। इसके अलावा उन्होंने कहा कि अंतर-राज्य समन्वय तंत्र की आवश्यकता है ताकि प्रवासी मजदूरों की समस्याओं के समाधान हेतु कार्यस्थल में सुधार कर उन्हें सामाजिक सुरक्षा योजनाओं से जोड़ा जा सके।